Kejriwal की गिरफ्तारी के बाद मई – जून की गर्मी आने से पहले ही भारत की राजनीति गरमा गई है , जिसकी तपिस दुनिया भर राजनेता और राजीतिग्य विश्लेषकों की बातों में देखी जा सकती है। जहा एक तरफ भारत में चुनाव होने वाले है तो वही दूसरी तरफ विपक्ष जेल में है या तो बेल में है। सत्ताधारी पार्टी पहले से ही मजबूत स्थिति में है और आगे भी रहने की उम्मीद है। क्यों की जिस तरह से भारत की राजनीति में विपक्ष का दायरा सिमट के रह गया है और भारत की जनता तक पहुँच पूरी तरह से रुक गई है , आप , कांग्रेस, या अन्य विपक्ष दल पूरी तरह से आम- जनता से दूर हो गई है और शायद ही वह इस चुनावी समय पर इसके करीब भी जा सके। कारण कुछ भी हो पर विपक्ष की इस लाचारी की जिम्मेदारी स्वयं विपक्ष को लेना चाहिए क्यों की अब तक किसी भी विपक्षी पार्टी ने सत्ताधारी पार्टी की कूटनीतियां और रणनीतियों को समझा ही नहीं है और न आम जनता के दिल में अपनी जगह ही बना पाई है , क्या विपक्ष ने राजनीती की सही से शिक्षा नहीं ली है या फिर वो वाकई में सत्ताधारी पार्टी से कमजोर है क्यों की उचाई पर ज्यादा समय तक कोई भी नहीं ठहर सकता है। और जिस तरह से भारत की वर्त्तमान में स्थिति है उसमे किसी भी सत्ता में रहने वाली पार्टी को हराया जा सकता है लेकिन उसमे क्या दिक्कत है जब सामने वाला पहले से ही हार मान चूका है।
जहा एक तरफ राजनेता अपनी अपनी कुर्सी लेकर आरामदायक पार्टी की तरफ जा रहे है ताकि वो इस राजनीति की लू से बच सके और संरक्षक पार्टी में एयर कंडीशनर की हवा खाते हुए रूह – ऑफ़ – जा का लुफ्त उठाया जा सके क्युकी अगली तरफ तो सिर्फ जेल की गर्मी और हार का डर है और कौन आज के समय में इतना साहसी है जो गलत को गलत कहकर अपने सुख – सुविधाओं में कमी कर सके। वास्तविकता तो ये है की आज के राजनेता , राजनेता न होकर सिर्फ एक ताज – नेता बनकर रह गये है। यदि भारत की राजनीति की यही दशा रही तो बहुत ही जल्द भारत में कुछ चीज़े परिवर्तित होते हुए हम देख सकते है। जो आने वाले समय में गंभीर परिणाम दे सकते है।
इतिहास गवाह है भारत में उसी ने राज किया है जिसने भारत की सबसे छोटी इकाई को पकड़ कर रखा है जाहे वो पार्टी कोई भी क्यों न हो। यदि आप सामान्य जनमानस के विचारों को नहीं समझ प् रहे हो तो आप भारत की सत्ता से बहुत दूर है। भारत के लोग सदैव एक ऐसे नेता को चुना है जिसने भारत की अखंडता और धार्मिकता को सही तरह से अपनाया है , तो क्या आपको नहीं लगता की अभी भी कुछ ऐसा ही है।
भारत की राजनीति में अभी कुछ एक दशक से राजनीति का अंदाज़ थोड़ा चेंज हो गया है जिसमे सोशल मीडिया ने अपना प्रभाव सबसे ज्यादा छोड़ा है और विचारों के आदान – प्रदान को आसान किया है जिससे किसी भी तरह की न्यूज़ को आसानी से लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। और किसी भी सही या गलत न्यूज़ को प्रमोट किया जा सकता है जिसमे किसी नेता को पप्पू बनाया जा सकता है तो किसी नेता को भगवान का अवतार बताया जा सकता है। तो सोशल मीडिया ने बहुत कुछ कण्ट्रोल कर रखा है।
केजरीवाल शराब घोटाले में फस गए है वैसे भी शराब है ही वो चीज़ जो अच्छे अच्छे को भी दिन में तारे और रात को सूरज दिखा दे , अब कुछ भी हो घोटाले हो बहुत हुए है भारत में अभी ताज़ा इलेक्टोरल बांड को ही देख लो लेकिन शराब घोटाला कहने में जो मज़ा है वो इलेक्टोरल घोटाला कहने में नहीं आता। जैसे जो शराब पीने में मज़ा है वो और कही कहा है? तो बस Kejriwal का शराब नीति घोटाला ज्यादा फेमस हो गया है और आम लोगों को कहने में भी सुविधा हो रही है क्युकी कुछ शराब में चूर राजनीति में ज्ञान देने वाले शराबियो की शराब का घोटाला मंजूर नहीं किया जा सकता , शराबी समाज इस पर कड़ा विरोध करेगा और अपने प्राणों को न्योछावर कर अपने जान से प्यारी शराब पर हुए घोटाले के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिला कर रहेंगे क्युकी इलेक्टोरल बांड घोटाला कहने में इनकी जवान लड़खड़ा जाएगी खैर आप इन शराबियों को कुछ कह नहीं सकते क्युकी ये अपनी ओछी हरकतों के द्वारा आपको गलत साबित कर हो देंगे। वैसे शराब घोटाला के दोषियों को सजा तो मिलनी चाहिए , हमारे सरकार को एक बड़ा राजस्व शराब से ही आता है और उसे पे करता है शराब पीने वाला। और इसके बदले में वो एक शरीर नष्ट करता है , कुछ सामाजिक स्तर को प्रभावित करता है एक परिवार के कुछ सदस्यों को कमजोरी के दलदल में ले जाता है , नैतिकता को खोता है , और देश की तरक्की को रोकने में भी योगदान देता है साथ में लिक्वेर के कारोबारियों और सरकार के खजाने को भरने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
इस बात का फायदा हर पार्टी और सरकार उठाती है अब कितने इसपर Kejriwal की तरह फसते है और कितने बच निकलते है ये सबको पता है। प्रवर्तन निदेशालय अपना काम बखूबी कर रही है और वो वास्तविक रूप में घोटाले में शामिल लोगों को ढूंढ लेगी बाकि का काम न्यायलय करेगा। क्या वाकई में हमे सिर्फ घोटालों तक ही सीमित रहना है य फिर एक सही व्यक्तित्व और राज्य निर्माण के लिए इन मादक पदार्थों पर पूरी तरह से रोक लगाना चाहिए। क्या राजस्व का यही सबसे अच्छा तरीका है? या फिर बुद्धजीवियों में इससे आगे का सोचा ही नहीं है ?